स्वार्थ
वास्तव में मनुष्य बहुत ही दुर्बल और कमज़ोर होता है। किन्तु कुछ चीज़े ऐसी होती है जो हमे अत्यंत बली बना देती हैं, जैसे स्वार्थ। स्वार्थ वह उग्र भाव है जो दुर्बल से दुर्बल व्यक्ति को भी बलवान बना देता है। इस भाव के कारण व्यक्ति में वह सबकुछ करने का बल, वह सबकुछ करने की क्षमता आ जाती है, जिसको करने में वह कभी सकुचाया करता था।
जब मनुष्य को कहीं भी कोई भी स्वार्थ नहीं दिखाई पड़ता तो वह, कुछ भी करने से पहले कई बार सोचता है। किन्तु जब उसको अपना स्वार्थ साफ़ दिखाई पड़ता है, तो वह इस प्रश्न को अपने चित्त में भटकने भी नहीं देता की जो वह कर रहा है इस सब का परिणाम क्या होगा। वह प्रसन्नचित्त होकर उस काम को कर देता है।
स्वार्थ बहुत बली होता है।