तन्हाई

कौन है वो जिससे पिछली शाम मिले, क्या कोई अनजान शख्स या तुम्हारी तन्हाई

कूचा-ए-आलिफ से मैं जब लौटा 

अज़ाब-ओ-अज़्ज़ियत लेकर,

कोई मिल गया राहों में बैठा 

ख़ल्वत में ज़िल्लत लेकर,

लगा ऐसे, की जैसे,

कोई पुराना अहबाब मिला,

लगा ऐसे, की जैसे,

कोई अधूरा ख्वाब मिला,

हम उठे साथ-साथ चल पड़े,

मैखाने की ओर निकल पड़े,

बड़ी अजब रही उस शख्स से ये मुलाक़ात,

बड़ी अजब रही वो मैकशी रात,

दिल में एक छोटी सी गुमराही थी,

वो शख्स कोई न था,

सब मेरे अंदर की तन्हाई थी। 

-क़लमकश