दोहे: हिंदी काव्य से एक छोटा सा परिचय
दोहे हिंदी काव्य में सबसे प्रचलित छंदों में से एक है। हालांकि नए कवियों के आने के बाद दोहों का उतना प्रचलन नहीं रहा। यह एक अर्द्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों व दो पंक्तियों से मिलकर बनता है। इसके पहले व तीसरे चरणों (विषम चरणों) में 13-13 मात्राएँ होती हैं, तथा दूसरे व चौथे चरणों (सम चरणों) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके दूसरे व चौथे चरणों के अंत में 1 लघु ( | ) अनिवार्य होता है, तथा पहले व तीसरे चरणों के आदि में जगण ( | S | ) वर्जित होता है। दोहों के लगभग 23 प्रकार होते हैं और हर एक की अलग-अलग मापनियाँ होती हैं जो हम आगे जानेंगे।
यह कुछ मेरे स्वरचित दोहे हैं-
प्रेम से जगत का चलन, प्रेम विश्व की रीत।
जिसको प्रेम नहीं ‘कलम’, जाने वह कब प्रीत।।
मन लालच से ना भरे, भरे सुधा ना लोभ।
जो ना भर पाए कभी, है मोही का मोह।।
दोराहे पे हैं खड़े, देखें हैं संसार।
आशाएँ हैं एक पे, दूजे पे आज़ार।।
असमंजस में हैं पड़े, हरो व्यथा हे! राम।
तारो हमको पीर से, तारो मोहे राम।।
आंखें पत्थर हो गयीं, देखा जो संसार।
जो तोड़े विश्वास को, हो जाए वो पार।।
दोहे छंद का सबसे अधिक उपयोग भक्तिकाल में किया गया है।