बला
बला-ए-अज़ीम दो आँखें,
उन आँखों में खुमारी,
उस खुमारी में इश्क़,
उस इश्क़ में दर्द,
उस दर्द में यादें,
उन यादों में मंज़र,
उन मंज़र में गुज़िश्ता लम्हे,
उन गुज़िश्ता लम्हों में दो आँखें,
उन आँखों में हसरत,
हसरत, किसीको पाने की,
हसरत, ग़म मिटाने की,
हसरत दिल लुटाने की,
हसरत खुदको भुलाने की,
ये हसरतें भी की बालाएं हैं,
पूरी न हो तो दर्द, पूरी हो तो भी दर्द,
आखिर है तो बला-ए-मुहब्बत ही का एक पहलू,
तो दर्द तो लज़िमी है।