पुष्प की अभिलाषा
यह कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी द्वारा मातृभूमि के प्रेम में रचित बड़ी ही सुंदर व प्रभावशाली कविता है। यह कविता सर्वप्रथम मैंने कक्षा-6 में पढ़ी और तभी से यह मुझे अत्यंत प्रिय हो गई। आशा करता हूँ आपको भी यह पसंद आएगी।
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ में देना तुम फेंक॥
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।
जिस पथ जावें वीर अनेक॥
– माखनलाल चतुर्वेदी