है हर इक ख्वाब वाबस्ता उसी से

बला

है हर इक ख्वाब वाबस्ता उसी से,

मुहब्बत है शुरू होती यहीं से।

तबीयत आज कुछ अच्छी नहीं है,

है शायद हाल ये तेरी कमी से।

है हर इक शक्स मुझको अजनबी सा,

उखड़ता जा रहा हूँ मैं ज़मीं से।

बड़ी गंदी है लत जिसको ज़फा की,

सुना है रब्त है उसको मुझी से।

न हर इक बात का मा’नी है होता,

क़लम कुछ बातें होती हैं तुम्ही से।