राम चलो वनवास चलें
राम चलो वनवास चलें,
लोग तुम्हें अब ना भजते।
रीत यहाँ कि नहीं अब वो,
छोड़ गये तुम थे तब जो।।
है पुरुषार्थ बचा अब ना,
है गहना अभिमान यहाँ।
प्रेम नहीं अब है मन में,
द्वेष पले हर सज्जन में।।
ज्ञान बचा बस कागज़ में,
हैं मति खो सब बैठ चुके।
मित्र सभी जब शत्रु बनें,
डोर सभी वह तोड़ चलें।।
है यह काल भयानक ही,
है मति फेर चला सबकी।
राम तुम्हें यह ज्ञान नहीं,
है दुनिया दस रंग भरी।।
मूंद स्वयं हम नेत्र रहे,
ना दुनिया हम देख सकें।
राम चलो वनवास चलें,
लोग तुम्हें अब ना भजते।।
-क़लमकश