ग़ज़ल- एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
है हर इक ख्वाब वाबस्ता उसी से,
मुहब्बत है शुरू होती यहीं से।
तबीयत आज कुछ अच्छी नहीं है,
है शायद हाल ये तेरी कमी से।
रंज-ओ-सितम से दूर फिरसे इश्क की हो इब्तिदा,
कोई ख़लिश ना हो जहाँ, कोई ख़लल ना हो जहाँ,
सब रंजिशों से दूर हों, सब बंदिशों से दूर हों,
कोई कशिश ना हो जहाँ, कोई जदल ना हो जहाँ।
तज़्किरे- महक रही हैं ये सबायें, खिल उठे है गुंचे फिर,मचल रहा है फिर चमन, मचल रही हैं इशरतें,बहार बन के आयी हैं निशात ज़िन्दगी में फिर…
बला-ए-अज़ीम दो आँखें,उन आँखों में खुमारी,उस खुमारी में इश्क़,उस इश्क़ में दर्द,उस दर्द में यादें,उन यादों में मंज़र…
Mir Taqi Mir was an Urdu poet known for his legacy of love and betrayal poetries. Here are two famous ghazals of ‘Mir’.
तू मुझमें आज भी बाकी है is a very beautiful Urdu Nazm composed by Kalamkash. Which describes the core of a broken lover’s heart.
दो सुलगते दिल is a short Nazm beautifully composed by Kalamkash. Which describes the silence between two hearts.
कौन है वो जिससे पिछली शाम मिले, क्या कोई अनजान शख्स? या तुम्हारी तन्हाई? “तन्हाई” is an Urdu Nazm beautifully composed by Kalamkash.
पहलू(pehlu) is a nazm from my diary based on the different faces and parts of life, sometimes we suffer in life, but later we all learn a good lesson from it.