निर्झर

शत-शत बाधा-बंधन तोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
प्लावित कर पृथ्वी के पर्त्त,
समतल कर बहु गह्वर गर्त्त,
दिखला कर आवर्त्त-विवर्त्त,
आता हूँ आलोड़ विलोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।

परिचय

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर” द्वारा रचित यह कविता ‘परिचय’ उनके प्रसिद्ध महाकाव्य ‘हुंकार’ में से ली गयी है |