अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो, न काम आए तो वापस दो जो काम आए तो…
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो, न काम आए तो वापस दो जो काम आए तो…
इन आँखों में रौशन रौशन कोई ख्वाब झलकता है,इन बातों में देखो जैसे कोई राज़ खटकता है।
हर दम के साथ लबों से इक आह निकलती है,
आँखें नम कैसे हैं, सासें क्यों जलती हैं।
करता हूँ मैं तलाश ज़र्रा-ज़र्रा अपना,
रोज़ नई कोई ख़ामी मुझमें निकलती है।
कहता है फाज़िल मय को चीज़ बुरी या रब,
जाने कैसे शामें उसकी गुज़रा करती हैं।
क़ायल नहीं ख़ुदा के फैसलों का मैं भी पर,
हूँ जानता मैं भी दुनिया कैसे चलती है।
ना छेड़ ‘क़लम’ मेरी साज़-ए-हस्ती को यूँ,
जाँ फिर कहाँ संभले जो एक बार बिखरती है।
ये क़िता “ऐ शहनशाह-ए-आस्माँ औरंग” आपने गुलज़ार साहब द्वारा रचित TV show या उनकी किताब “मिर्ज़ा ग़ालिब” में ज़रूर पढ़ा या सुना होगा जो ग़ालिब ने आखिरी मुग़ल बादशाह को अपने हालात का बखान करते हुए लिखा था। वैसे तो यह क़िता आप रेख़्ता पर उर्दू में पढ़ सकते हैं पर क्योंकि बहुत से लोगों को उर्दू पढ़नी नहीं आती है, इसलिए मैनें इसका देवनागरी में अनुवाद कर दिया। साथ ही कुछ कठिन शब्द हैं जिनका मतलब मैनें नीचे दे दिया है।
ऐसा कोई आलम, कोई ऐसा जहाँ होता कभी,
ना बंदिशे, ना रंजिशें, ना कश्मकश, ना ही ख़लिश,
मैं सोचता हूँ क्या कहीं ऐसा जहाँ भी होता है?
होता नहीं जिसमें ज़लल, ना ही बुरी कोई रविश।
मैं सोचता हूँ, गर्दिश-ए-आयाम को हम भूलकर,
फिर, इब्तिदा करते किसी ऐसे जहाँ में, इश्क की,
जिसमें छलकती आरज़ू, जिसमें खटकता इज़्तिराब,
जिसमें विसाल-ए-यार हो, जिसमें उरूज-ए-खल्क हो,
जिसमें नहीं कुछ कश्मकश, जिसमें नहीं कुछ जुस्तुजू,
बे-गैरती ना हो जहाँ, कुछ ‘आरज़ी ना हो जहाँ,
ये मस’अले ना हो जहाँ, ये हसरतें ना हो जहाँ ।
मैं सोचता हूँ, हो कोई ऐसा जहाँ बे-साख्ता,
मैं सोचता हूँ, है कोई ऐसा जहाँ बे-साख्ता?
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
कौन है वो जिससे पिछली शाम मिले, क्या कोई अनजान शख्स? या तुम्हारी तन्हाई? “तन्हाई” is an Urdu Nazm beautifully composed by Kalamkash.
‘है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और’ is the most famous Ghazal of the most famous urdu poet Mirza Ghalib.
“ये शहर की चकाचौंध आँखों में बड़ी खलती है,ये शहर शायद खा रहा है मुझे।” ‘शहर’ is a very beautiful Nazm written by Kalamkash.
For the unpredictable paths of life, Kalamkash wrote a very beautiful ghazal named ‘कोई रोता है’ which is a must-read for all Urdu lovers.