ग़ज़ल- एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
‘है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और’ is the most famous Ghazal of the most famous urdu poet Mirza Ghalib.
परछाइयाँ (Parchhaiyan) is a very beautiful Nazm from Sahir Ludhianvi’s first book “Talkhiyan” published in 1958.
अंधेरा is a beautiful Nazm composed by Kalamkash, which tells us about the role of society in an incomplete love story.
First Yotube video of Kalamkash reciting the famous nazm of Faiz Ahmed Faiz sahab’s – “Kuch ishq kiya kuch kaam kiya”