हिन्दी
बहुत दुःख की बात है की आज की पीढ़ी अपनी भाषा संस्कृति को छोड़,
अन्य देशों की भाषा संस्कृति को बढ़ावा दे रही है |
-क़लमकश
१४ सितम्बर १९४९, वह दिन जब हिन्दी को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित करा गया | इसके बाद १९५० में संविधान द्वारा हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई | पर बहुत दुःख की बात है की हमारी राष्ट्रीय पुस्तकों और कवियों तक ही सीमित रह गयी है | और यदि अन्य किन्ही कार्यों में देखा जाये तो वह सरकारी कार्य होंगे |
मैं यह नहीं चाहता कीराष्ट्रीय भाषा का प्रयोग हर समय किया जाये या केवल हिन्दी ही में बोलो, वह जनता का अपना निर्णय है कि वह किस भाषा का प्रयोग करना चाहते है | किन्तु मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा की कम से कम इस भाषा का अपमान न करा जाये | क्योंकि नई पीढ़ी में यह बहुत अधिक देखा जाता है कि इन्हे अपनी संस्कृति व अपनी भाषा पर शर्म आती है, लोग अपनी भाषा और संस्कृति को छिपाना चाहते हैं | जिसके लिए मैं पूछना चाहूंगा क्यों ?
हालांकि आज के दौर में कुछ युवा ऐसे भी हैं जो फिरसे अपनी भाषा और संस्कृति को समाज में जगह दिलाना चाहते हैं | पर ऐसे युवाओं संख्या काफी कम है |
लोगों को समझने की आवश्यकता भाषा और हमारी संस्कृति के अलावा कोई नहीं लेजा सकता | साईजी मकीनो जी ने कहा था की “नयी पीढ़ी अपनी सभ्यता संस्कृति से दूर होती जा रही है, यह बड़े दुःख की बात है | को आगे बढ़ने के लिए अपनी भाषा और संस्कृति ही काम आती है, पर शायद आज भी लोग यह बात नहीं समझ सके |”
मैं बस इतना कहना चाहूंगा की अपनी भाषा और संस्कृति को समझने का प्रयास करें |