ख़ल्वत
यादों में खोए हुए ख़ल्वत में बैठे हैं,
हम तो आज-कल किसीकी मुहब्बत में बैठे हैं|
शबे नम हैं अश्कों में, सेहरें फ़ज़ाओं में घुलतीं हैं,
आज फिर किसीके सबब हम इश्रत में में बैठे हैं|
तुम आये नहीं मुड़कर के अरसा होने को आया,
मुद्दतें हुईं की तुम्हारी चाहत में बैठे हैं|
ये शज़र फिर गुनगुनाते हैं, ये शाख़ें फिर लहराती हैं,
आज फिर हम अकेले हैं और ख़ल्वत में बैठे हैं|
अब आ भी जाओ कि किसका इंतज़ार है तुम्हें?
हम तो तुम्हारे अक्स की नगहत में बैठे हैं|