ख़ल्वत

ख़ल्वत is a lovely Ghazal composed by Kalamkash, which shows a true lover's heart while missing his soulmate.

यादों में खोए हुए ख़ल्वत में बैठे हैं,

हम तो आज-कल किसीकी मुहब्बत में बैठे हैं| 

शबे नम हैं अश्कों में, सेहरें फ़ज़ाओं में घुलतीं हैं,

आज फिर किसीके सबब हम इश्रत में में बैठे हैं| 

तुम आये नहीं मुड़कर के अरसा होने को आया,

मुद्दतें हुईं की तुम्हारी चाहत में बैठे हैं| 

ये शज़र फिर गुनगुनाते हैं, ये शाख़ें फिर लहराती हैं,

आज फिर हम अकेले हैं और ख़ल्वत में बैठे हैं| 

अब आ भी जाओ कि किसका इंतज़ार है तुम्हें?

हम तो तुम्हारे अक्स की नगहत में बैठे हैं|