लहू

पुष्प की अभिलाषा

लहू की कहानीं हैं कुछ सुनो,

देश पर लुटी जवानीं हैं कुछ सुनो,

कंकड़ भी बोलें ‘जय हिंद’ जिस देश के,

किस्से उस देश की ज़बानीं हैं कुछ सुनो।

सीमाएं लाँघकर जब जंगपसंदों के दल आए,

तोड़कर दीवारें काले साए निकल आए,

हर शहर, हर गाँव में अंधेरा जब फ़ैल गया,

किरण सी बनकर कई लोग प्रबल आए।

लहू की बरसात हुई, माटी भी जब गरज उठी,

लहू की वो भयानक कहानी सुनो,

नदियाँ भी बोलें ‘जय हिंद’ जिस देश की,

किस्से उस देश की ज़बानीं सुनो।

गोली की आवाज़ों से, जब दीवारें डर जातीं थीं,

जूतों की खट-खट से, बस्तियाँ उजड़ जातीं थीं,

आज़ादी की कीमत तब लहू से लगाई गई,

खून टपकतीं रातें फिर, थपकियों से सुलाईं गईं,

फ़िर हुए खड़े नौजवान कुछ वीरों ने सीना तान लिआ,

भड़कते शोले, खून से लथपथ, उन सीनों की जवानी सुनो,

बूटा-बूटा बोले ‘जय हिंद’ जिस देश का,

किस्से उस देश की ज़बानीं सुनो।

नमन उनके लहू को, नमन उन नोजवानों को, 

नमन उन अस्थियों को, नमन उन बलिदानों को, 

नमन उस आज़ाद को, नमन उस रानी को,

नमन राजगुरू, भगत सिंह, सुखदेव, नमन उनकी कुरबानी को,

नमन उधम सिंह को, नमन सरदार पटेल को,

नमन लोकमान्य तिलक को, नमन पंजाबी शेर को,

नमन हर उस वीर को, कि जिसने लहू बहाया, नमन हर उस वीर को, कि जिसने देश बचाया।

लहू बहाया जिन वीरों ने,

उन वीरों की कहानी सुनो,

बहती अस्थियाँ भी बोलें ‘जय हिंद’ जिस देश में,

किस्से उस देश की ज़बानीं सुनो।