ग़ज़ल- एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो

एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।

मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।

रंज-ओ-सितम से दूर

रंज-ओ-सितम से दूर फिरसे इश्क की हो इब्तिदा,
कोई ख़लिश ना हो जहाँ, कोई ख़लल ना हो जहाँ,
सब रंजिशों से दूर हों, सब बंदिशों से दूर हों,
कोई कशिश ना हो जहाँ, कोई जदल ना हो जहाँ।