ग़ज़ल- एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
राहत जो नहीं रोग से गर फिर तो कज़ा हो।
मैं जानता हूँ ये जो शब-ए-ग़म की कसक है,
है चाह तुझे भी ज़रा ये दर्द पता हो।
है हर इक ख्वाब वाबस्ता उसी से,
मुहब्बत है शुरू होती यहीं से।
तबीयत आज कुछ अच्छी नहीं है,
है शायद हाल ये तेरी कमी से।
रंज-ओ-सितम से दूर फिरसे इश्क की हो इब्तिदा,
कोई ख़लिश ना हो जहाँ, कोई ख़लल ना हो जहाँ,
सब रंजिशों से दूर हों, सब बंदिशों से दूर हों,
कोई कशिश ना हो जहाँ, कोई जदल ना हो जहाँ।
तू मुझमें आज भी बाकी है is a very beautiful Urdu Nazm composed by Kalamkash. Which describes the core of a broken lover’s heart.
ख़ल्वत is a lovely Ghazal composed by Kalamkash, which shows a true lover’s heart while missing his soulmate.