दिल-ए-मुज़्तर, दिल-ए-नाशाद, ये नाराज़गी कैसी
दिल-ए-मुज़्तर, दिल-ए-नाशाद, ये नाराज़गी कैसी,
न रंज हो, ना सितम, ना ठोकरें तो ज़िंदगी कैसी।
दिल-ए-मुज़्तर, दिल-ए-नाशाद, ये नाराज़गी कैसी,
न रंज हो, ना सितम, ना ठोकरें तो ज़िंदगी कैसी।
तू मुझमें आज भी बाकी है is a very beautiful Urdu Nazm composed by Kalamkash. Which describes the core of a broken lover’s heart.
कौन है वो जिससे पिछली शाम मिले, क्या कोई अनजान शख्स? या तुम्हारी तन्हाई? “तन्हाई” is an Urdu Nazm beautifully composed by Kalamkash.
“ये शहर की चकाचौंध आँखों में बड़ी खलती है,ये शहर शायद खा रहा है मुझे।” ‘शहर’ is a very beautiful Nazm written by Kalamkash.
अंधेरा is a beautiful Nazm composed by Kalamkash, which tells us about the role of society in an incomplete love story.